बोकारो :दुनियाभर में आज भी ऐसी कई चीजें रहस्य बनी हुई हैं, जिनका खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है। कई रहस्यों को तो देश-विदेश के वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाएं हैं। ऐसी ही एक रहस्यमयी जगह है दलाही कुंड, जहां ताली बजाने पर पानी बाहर निकलता है। झारखण्ड के बोकारो में स्थित इस पानी के कुंड के पीछे क्या रहस्य है, आज तक किसी को समझ नहीं आया।
आमजन के लिए कौतूहल का विषय
बोकारो जिले के जरीडीह प्रखंड की अरालडीह पंचायत के गझंडीह गांव में ऐतिहासिक एवं भूगर्भीय शोध स्थल दलाही बुलबुला इस क्षेत्र के प्रमुख पिकनिक स्पाट में से एक है। यहां दूर-दराज से लोग पिकनिक मनाने आते हैं। यहां का दलाही बुलबुला कुंड आकर्षण का केंद्र है। यह कुंड धार्मिक आस्था का केंद्र होने के साथ प्राचीन काल से कौतूहल का विषय बना हुआ है। यहां गरमी में ठंडा जल और जाड़े के मौसम में गर्म जल शारीरिक एवं मानसिक सुकून पैदा करता है। दैहिक, दैविक एवं भौतिक कष्टों के निवारण के लिए इस दलाही कुंड के पास जाने पर लोगों को अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है।
ताली बजाने पर बाहर आता है पानी
इस जल कुंड में एक रहट के आयतन के बराबर हमेशा पानी निकलता रहता है, लेकिन, ताली बजाने, जोर से बोलने या पैर पटकने आदि की आवाज से कुंड से बुलबुला के रूप में पानी निकलने की गति और तेज हो जाती है। आवाज उत्पन्न होते ही मुख्य कुंड के अलावा चारों ओर अन्य जगहों से भी पानी के बुलबुले निकलते रहते हैं। इस जलस्रोत के आसपास कहीं से भी पानी आने की गुंजाइश नहीं है। फिर भी एक निश्चित दायरे पर बने इस गड्ढे में पानी भरा रहता है और अतिरिक्त जल एक किनारे से नदी में गिरता रहता है। एक और कुंड की जमीनी सतह ऊपर से दिखाई देती है।
पूर्वजों के समय से ही धार्मिक आस्था का केंद्र
मान्यता है कि इस कुंड के जल से स्नान करने पर चर्म रोग समेत अन्य कई बीमारियां दूर हो जाती हैं। इस कारण यहां हर वर्ष काफी संख्या में लोग आते हैं। बताया जाता है कि वर्ष 1981 से प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति मेला भी लगता है। स्थानीय निवासी भीम कुमार साव, तुलसी साहू, माथुर हजाम, अशोक साहू, धीरेन कपरदार, दुर्गा प्रसाद महतो, गोपाल साहू के अनुसार यह स्थल पूर्वजों के समय से ही धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है।
सरकार ने कराए कई काम
हाल के दिनों में इसे विकसित करने के लिए सरकारी स्तर पर कई काम हुए हैं। कुंड को चारों ओर से घेर के सुरक्षित कर दिया गया है। चारदीवारी, शेड, शौचालय आदि का निर्माण भी हुआ है। गांव से वहां तक जाने के लिए पक्की सड़क भी निर्माणाधीन है। जैनामोड़- चिलगड्डा मार्ग से लगभग दस किलोमीटर की दूरी चलकर यहां तक पहुंचा जा सकता हैं।

